Billede af showet Gita Acharan

Gita Acharan

Podcast af Siva Prasad

engelsk

Sundhed & personlig udvikling

Begrænset tilbud

1 måned kun 9 kr.

Derefter 99 kr. / månedOpsig når som helst.

  • 20 lydbogstimer pr. måned
  • Podcasts kun på Podimo
  • Gratis podcasts
Kom i gang

Læs mere Gita Acharan

Bhagavad Gita is a conversation between Lord Krishna and Warrior Arjun. The Gita is Lord's guidance to humanity to be joyful and attain moksha (salvation) which is the ultimate freedom from all the polarities of the physical world. He shows many paths which can be adopted based on one's nature and conditioning. This podcast is an attempt to interpret the Gita using the context of present times. Siva Prasad is an Indian Administrative Service (IAS) officer. This podcast is the result of understanding the Gita by observing self and lives of people for more than 25 years, being in public life.

Alle episoder

643 episoder
episode 203. गुणों के पहलू artwork

203. गुणों के पहलू

श्रीकृष्ण कहते हैं, "जब देहधारी जीव सत्त्वगुण की प्रधानता में मृत्यु को प्राप्त होता है, तब वह उत्तम ज्ञान वालों के शुद्ध लोकों को प्राप्त होता है(14.14)। जो व्यक्ति रजोगुण की प्रधानता में शरीर त्याग करता है, वह कर्मों में आसक्त लोगों के बीच जन्म लेता है। और जो तमोगुण में लीन होकर मृत्यु को प्राप्त होता है, वह मूढ़ (अविवेकी या अज्ञानमय) योनियों में जन्म लेता है"(14.15)। श्रीकृष्ण ने पहले जीवन-मृत्यु-जीवन के बारे में समझाया था जहाँउन्होंने कहा था कि जब कोई मृत्यु के समय उनका स्मरण करता है तो वह उन तक पहुँच जाता है, लेकिन उन्होंने आगाह किया कि व्यक्ति अपने जीवनकाल में जो अभ्यास करता है, वही निर्धारित करता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात क्या होगा (8.5 और 8.6)। यह इंगित करता है कि जीवन से मृत्यु और फिर जीवन में संक्रमण स्वाभाविक है, इसमें कोई विस्मय नहीं है। यदि किसी का जीवन सत्वगुण प्रधान है, तो संक्रमण सत्व के माध्यम से ही होगा। यही बात रजोगुण और तमोगुण के साथ भी लागू होती है। श्रीकृष्ण इन तीन गुणों के द्वारा उत्पन्न विभिन्न कर्मफलों का वर्णन करते हुए कहते हैं, "सत्वगुण का फल सद्भाव और पवित्रता है। रजोगुण का फल दुःख है। तामसिक कर्मों का फल अज्ञान है (14.16)। सत्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ और तमोगुण से भ्रम और अज्ञान पैदा होते हैं (14.17)। सत्वगुण में स्थित जीव ऊपर स्वर्गादि उच्च लोकों मे जाते हैं; रजोगुण में स्थापित पुरुष मध्य में पृथ्वीलोक पर ही रहते हैं और तमोगुण में स्थित पुरुष अधोगति की ओर जाते हैं" (14.18)। पुस्तक पढ़ने का उदाहरण हमें गुणों के संदर्भ में कर्मफल को समझने में मदद करेगा। जब हम सत्वगुण से प्रभावित होते हैं, तो हम ज्ञान और समझ प्राप्त करने के लिए कोई पुस्तक पढ़ते हैं। रजोगुण में रहते हुए हम अच्छे अंक पाने के लिए पढ़ते हैं जो तनाव पैदा करता है। तमोगुण में हम पुस्तक पढ़ते-पढ़ते सो जायेंगे। ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रत्येक गुण अपने तरीके से आत्मा को भौतिक शरीर से बांधता है। उपरोक्त श्लोक हमारे जीवनकाल के दौरान हमारे अंदर प्रबल गुण के आधार पर जीवन के विभिन्न पहलुओं की झलक देते हैं।

08. dec. 2025 - 4 min
episode 202. प्रभावशाली गुण की पहचान artwork

202. प्रभावशाली गुण की पहचान

श्रीकृष्ण कहते हैं, "सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण नामक प्रकृति से उत्पन्न तीन गुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बांधते हैं (14.5)। इनमें, सत्वगुण निर्मल होने के कारण आत्मा को सुख और ज्ञान के भावों के प्रति आसक्ति उत्पन्न करके उसे बन्धन में डालता है (14.6)। रजोगुण की प्रकृति इच्छा है। यह कामना और आसक्ति  को जन्म देता है और आत्मा को कर्म में बांधता है (14.7)। तमोगुण अज्ञान से उत्पन्न होता है और देहधारी जीवात्माओं में मोह का कारण है। तमोगुण सभी जीवों को असावधानी, आलस्य और निद्रा के द्वारा भ्रमित करता है" (14.8)।मूलतः, प्रकृति से उत्पन्न तीन गुण आत्मा को, जो कि परमात्मा का बीज है, भौतिक शरीर से बांधने के लिए उत्तरदायी हैं। श्रीकृष्ण आगे कहते हैं, "सत्वगुण सुख में बांधता है, रजोगुण कर्म में, जबकितमोगुण ज्ञान को ढककर आत्मा को प्रमाद में रखता है 14.9)। कभी-कभी सत्वगुण प्रबल होकर रजोगुण और तमोगुण पर हावी हो जाता है; कभी-कभी रजोगुण, सत्वगुण और तमोगुण पर हावी होता है; और कभी-कभी तमोगुण, सत्वगुण और रजोगुण पर हावी हो जाता है" (14.10)। इसका तात्पर्य यह है कि हम अलग-अलग समय पर इन गुणों के विभिन्न अनुपातों के संयोजन के प्रभाव में रहते हैं। जिस प्रकार तीन प्राथमिक रंग, लाल, पीला और नीला, मिलकर अनन्त रंग उत्पन्न करते हैं, उसी तरह ये तीन गुण हमारे आस-पास दिखाई देने वाले विविध व्यवहारों के लिए उत्तरदायी हैं। अगला प्रश्न है, यह कैसे पता चले कि किसी निश्चित समय पर कौन सा गुण हमें बाँध रहा है। श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं, "जब सत्व गुण प्रबल होता है तो शरीर के सभी द्वार ज्ञान के प्रकाश से आलोकित हो जाते हैं (14.11)। जब रजोगुण प्रबल होता है तब लोभ, सकाम कर्म का प्रारम्भ, बेचैनी, अनियंत्रित इच्छा एवं लालसा के लक्षण प्रकट होते हैं (14.12)। तमोगुण जब हावी होता है तो अंधकार, जड़ता, असावधानी और भ्रम पैदा करता है" (14.13)। तमोगुण केहावी होने पर हम सो जाते हैं। रजोगुण हमें कर्म करने और सिद्धि के लिए प्रेरित करता है। सत्वगुण सीखने और ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरणादायी है। इसलिए, गुण ही हमसे उत्पन्न होने वाले प्रत्येक कार्य के वास्तविककर्ता हैं। जागरूकता मूलतः उस गुण को पहचानने की क्षमता है, सके नियंत्रण में हम किसी भी क्षण होते हैं।

02. dec. 2025 - 4 min
episode 201. माता और पिता artwork

201. माता और पिता

भगवद्गीता के चौदहवें अध्याय का शीर्षक 'गुण त्रय विभाग योग' अर्थात्गुणों से परे जाकर एकता है। यह पहले बताए गए प्रकृति के वर्णनका विस्तार है। इस अध्याय में, श्रीकृष्ण प्रकृति से उत्पन्न गुणों के बारे में और ज्ञान प्राप्त करके उनको कैसे पार किया जाए इस विषय में गहराई से बताते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं, "अब मैं पुनः तुम्हें सभी ज्ञानों में उत्तम उस परम ज्ञान के विषय में बताऊँगा, जिसे जानकर सभी महान संतों ने परम सिद्धि प्राप्त की है(14.1)। वे जो इस ज्ञान की शरण लेते हैं, मेरे साथ एकीकृत होंगे और वे सृष्टि के समय न तो पुनः जन्म लेंगे और न ही प्रलय के समय उनका विनाश होगा" (14.2)। सबसे पहले, श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं फिर से समझाऊंगा, जो पहले बताई गई बातों को दोहराने की ओर संकेत करता है। कहा जाता है कि बार-बार दोहराना ही महारथ की कुंजी है। उदाहरण के लिए, किसी पुस्तक की विषय-वस्तु एक ही होती है, फिर भी बार-बार पढ़ने से हमारी समझ बढ़ती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हर बार पढ़ने के साथ हमारी आत्मसात करने की क्षमता बढ़ती जाती है। दूसरी बात, यह श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच एक जीवंत संवाद था। जब भी श्रीकृष्ण को लगता कि अर्जुन कुछ बातें समझनहीं पा रहा है, तो वे करुणावश उसे दोहरा देते हैं। श्रीकृष्ण आगे कहते हैं, "मेरा गर्भ महत्-ब्रह्म (मूल प्रकृति) है, जिसमें मैं बीज स्थापित करता हूँ; यह सभी प्राणियों के जन्म का कारण है (14.3)। सभी गर्भों में जो भी रूप उत्पन्न होते हैं, प्रकृति उनकी गर्भ (माता) है, और मैं बीज देने वाला पिता हूँ" (14.4)।  प्रकृति समस्त सृष्टि की माता है और परमात्मा पिता हैं। परमात्मा का एक छोटा सा अंश (बीज), जिसे आत्मा कहते हैं, प्रकृति को दिया जाता है ताकि प्रत्येक जीव फल-फूल सके। बीज विकास का प्रतीक है जो विभिन्न जीवन रूपों के विकास का मूल है। श्रीकृष्ण ने पहले हमें दूसरों में स्वयं को, स्वयंमें दूसरों को देखने और अंततः उन्हें सर्वत्र देखने के लिए कहा था, क्योंकि सभी प्राणी उनके ही 'बीज' हैं।

30. nov. 2025 - 3 min
episode 200. आत्मा शरीर को प्रकाश देती है artwork

200. आत्मा शरीर को प्रकाश देती है

श्रीकृष्ण कहते हैं, "जिस प्रकार से एक सूर्य समस्त ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है उसी प्रकार से आत्मा चेतना शक्ति के साथ पूरे शरीर को प्रकाशित करती है" (13.34)। शरीर में जीवन लाने के लिए आत्मा की आवश्यकता होती है। यह बिजली की तरह है जो उपकरणों में जीवन लाती है।  गीता के तेरहवें अध्याय का शीर्षक 'क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग' है जहां श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि भौतिक शरीर को क्षेत्र कहा जाता है जिसके गुणों में अहंकार(मैं कर्ता हूँ), बुद्धि, मन, दस इंद्रियां, इंद्रियों के पांच विषय, इच्छा, घृणा, सुख, दुःख, स्थूल देह का पिंड, चेतना और धृति शामिल हैं। क्षेत्र के ज्ञाता को क्षेत्रज्ञ कहा जाता है।  श्रीकृष्ण ने ज्ञान के लगभग बीस पहलुओं का उल्लेख किया है और वे विनम्रता को सबसे आगे रखते हैं जो दर्शाता है कि यह कमजोरी नहीं बल्कि एक सद्गुण है। ज्ञान के अन्य पहलुओं में क्षमा, आत्म-संयम, इंद्रिय वस्तुओं के प्रति वैराग्य, अहंकार का अभाव, अनासक्ति और प्रिय और अप्रिय परिस्थितियों के प्रति शाश्वत समभाव शामिल हैं। श्रीकृष्ण इस ज्ञान के उद्देश्य के बारे में आगे बताते हैं। एक बार जब वह 'उस' को जान लेता है जो जानने योग्य है तो वह आनंद प्राप्त करता है। यह न तो सत् है और न ही असत् है और सभी में व्याप्त होकर संसार में निवास करता है। वह ध्यान, जागरूकता,कर्म या संतों को सुनने के माध्यम से 'उस' को प्राप्त करने का मार्ग बताते हैं।  श्रीकृष्ण प्रकृति के बारे में बात करते हैं जो कारण और प्रभाव के लिए जिम्मेदार है। पुरुष अपनी व्याख्या के अनुसार सुख और दुःख के अनुभव के लिए जिम्मेदार है। दोनों अनादि हैं।  श्रीकृष्ण भगवद गीता के तेरहवें अध्याय का समापन करते हुए कहते हैं, "जो लोग ज्ञान चक्षुओं से क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के बीच के अन्तर और प्रकृति की शक्ति के बन्धनों से मुक्त होने की विधि जान लेते हैं, वे परम लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं" (13.35)। यह भगवान श्रीकृष्ण का आश्वासन है कि एक बार जब हम क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ की गहरी समझ प्राप्त कर लेते हैं तो हम शाश्वत अवस्था में पहुँच जाते हैं।

16. nov. 2025 - 3 min
episode 199. एक जड़ एक मूल artwork

199. एक जड़ एक मूल

श्रीकृष्ण कहते हैं, "जब वे विविध प्रकार के प्राणियों को एक ही परम शक्ति परमात्मा में स्थित देखते हैं और उन सबको उसी से जन्मा समझते हैं तब वे ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करते हैं" (13.31)। समसामयिक वैज्ञानिक समझ के अनुसार ब्रह्माण्ड लगभग 14 अरब वर्ष पूर्व एक बिन्दु से प्रारम्भ हुआ और आज भी विस्तारित हो रहा है। विस्तार की इस प्रक्रिया से बड़ी संख्या में तारे और ग्रह बने। इसने विभिन्न प्रकार के प्राणियों को भी जन्म दिया। यह श्लोक अपने समय की भाषा का प्रयोग करते हुए यही संदेश देता है।  हालांकि यह ज्ञान आसानी से प्राप्त किया जा सकता है, यह श्लोक वर्तमान क्षण में 'एक मूल' को देखने की क्षमता को इंगित करता है। हम विभिन्न जीवन रूपों और विभिन्न स्थितियों का सामना करते हैं जिसके परिणामस्वरूप हमारे भीतर कई भावनाएं पैदा होती हैं। जब हम 'एक मूल' का अनुभव करते हैं, तो हम 'मेरा और तुम्हारा' के विभाजन से मुक्त हो जाते हैं। इस श्लोक को मोक्ष की परिभाषा के रूप में भी लिया जा सकता है जो यहां और अभी परम स्वतंत्रता है।  श्रीकृष्ण आगे कहते हैं, "परमात्मा अविनाशी है और इसका कोई आदि नहीं है और प्रकृति के गुणों से रहित है। यद्यपि यह शरीर में स्थित है किन्तु यह न तो कर्म करता है और न ही प्रकृति की शक्ति से दूषित होता है (13.32)। आकाश सबकुछ अपने में धारण कर लेता है। जिसे यह धारण किए रहता है उसमें लिप्त नहीं होता। इसी प्रकार से आत्मा शरीर में व्याप्त रहती है फिर भी आत्मा शरीर के धर्म से प्रभावित नहीं होती" (13.33)। ऐसी ही जटिलता को समझाने के लिए श्रीकृष्ण ने कमल के पत्ते का उदाहरण दिया जो पानी के संपर्क में रहने के बावजूद भीगता नहीं है। इसी प्रकार आत्मा भी शरीर के गुणों से प्रभावित नहीं होती।  आकाश हमारे चारों ओर है और यह सब कुछ धारण करता है, लेकिन दूषित नहीं होता क्योंकि यह न तो किसी चीज से जुड़ता है और न ही किसी चीज से अपनी पहचान बनाता है। जब भी हम आकाश को देखते हैं तो इस पहलू को याद रखना आवश्यक है और कुछ ध्यान की तकनीकें इस पहलू का उपयोग करती हैं।

10. nov. 2025 - 3 min
En fantastisk app med et enormt stort udvalg af spændende podcasts. Podimo formår virkelig at lave godt indhold, der takler de lidt mere svære emner. At der så også er lydbøger oveni til en billig pris, gør at det er blevet min favorit app.
En fantastisk app med et enormt stort udvalg af spændende podcasts. Podimo formår virkelig at lave godt indhold, der takler de lidt mere svære emner. At der så også er lydbøger oveni til en billig pris, gør at det er blevet min favorit app.
Rigtig god tjeneste med gode eksklusive podcasts og derudover et kæmpe udvalg af podcasts og lydbøger. Kan varmt anbefales, om ikke andet så udelukkende pga Dårligdommerne, Klovn podcast, Hakkedrengene og Han duo 😁 👍
Podimo er blevet uundværlig! Til lange bilture, hverdagen, rengøringen og i det hele taget, når man trænger til lidt adspredelse.

Vælg dit abonnement

Begrænset tilbud

Premium

20 timers lydbøger

  • Podcasts kun på Podimo

  • Gratis podcasts

  • Opsig når som helst

1 måned kun 9 kr.
Derefter 99 kr. / måned

Kom i gang

Premium Plus

100 timers lydbøger

  • Podcasts kun på Podimo

  • Gratis podcasts

  • Opsig når som helst

Prøv gratis i 7 dage
Derefter 129 kr. / month

Prøv gratis

Kun på Podimo

Populære lydbøger

Kom i gang

1 måned kun 9 kr. Derefter 99 kr. / måned. Opsig når som helst.